जैव रसायन अनुभाग

बी हेवी के गन्ने के शीरे का किण्वन प्रक्रिया का अध्ययन, जिससे सतत-इथेनाल उत्पादन हो सके।

बी हेवी के गन्ने के शीरे का किण्वन प्रक्रिया का अध्ययन लगभग 120 दिनों में किया गया जिससे सतत-इथेनाल उत्पादन हो सके।

इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये बी-स्तर के गन्ने का शीरा तथा गुड़ उ.प्र., महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडु के लगभग 20 शर्करा उद्योगों से नमूने संग्रह किये गये।



बी हेवी शीरा से एथनोल उत्पादन संबन्धित प्रयोग मे. धामपुर शर्करा मिल लिमिटेड, धामपुर, बिजनौर मे 5 नवंबर 2015 से 7 नवंबर 2015 तक प्रयोग किए गए, जिसमे पाया गया कि बी हेवी शीरा से प्रति कुंतल 282 लीटर एथनोल उत्पादन हो रहा है।

शीरे के किण्वन में एंजाइमों का प्रयोग

प्रारंभिक अध्ययन में पाया गया कि एंजाइमों के प्रयोग से एक से तीन लीटर तक अतिरिक्त अल्कोहल का उत्पादन किया जा सकता है, जिसका आर्थिक दृष्टिकोष से उत्पादन लागत के स्तर पर भी अध्ययन किया जा सकता है।

कसावा से अल्कोहल का उत्पादन

य़ह अनुसंधान एस. निजलिंगप्पा शर्करा संस्थान, बेलागावी, कर्नाटक के सहयोग से शुरू किया गया है। इसके लिये कसावा के चिप्स, आटा के नमूने को राष्ट्रीय कंद-शोध संस्थान, केरल से प्राप्त किया गया है। एंजाइमों को मे. केटलिस्ट, नोयेडा से प्राप्त किया गया है तथा कसावा के स्टार्च से किण्वन योग्य शर्करा पर शोध शुरू किया गया है।

कार्बनिक रसायन विभाग

बगास-फ्लाई ऐश से जियोलाइट का उत्पादन, संश्लेषण एवं उनके उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग-

फ्लाईऐश से जियोलाइट के संश्लेषण पर प्रयोग किये जा रहे हैं। उत्पाद के प्राप्ति तथा उसकी विशेषताओं पर अध्ययन जारी है।

बगास से ग्रेफीन आक्साइट का उत्पादन- संश्लेषण एवं कार्बो-कैटलिसिस में प्रयोग-

बगास से ग्रेफीन आक्साइड का संश्लेषण तथा कार्बोकेटलिसिस में इसके प्रयोग पर काम शुरू किया गया है।

फ्लाईऐश के रूप में अल्प लागत रंग शोषक पर अध्ययन-


इसके लिये प्रयोगात्मक इकाई की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फैक्ट्रियों से प्राप्त फ्लाईऐश को सुखाकर K2 S2 O8के माध्यम से उपचारित फ्लाईऐश प्राप्त किया जा रहा है।


शर्करा अभियांत्रिकी विभाग-

बगास / गन्ने की खोई को फ्लू गैस के माध्यम से सुखाना- प्राप्त आंकड़ों के आधार पर एक शोध पत्र प्रकाशन के लिये भेजा गया है जिसमें विद्युत उत्पादन के क्षेत्र मे बगास को सुखाने की महत्ता पर बल दिया गया है।

बगास/ गन्ने की खोई का गैसीकरण-

प्रतिशत तक नमी की बगास के गैसीकरण में सफलतापूर्वक शोधकार्य मे. अंकुर वैज्ञानिक ऊर्जा एवं तकनीक प्रा. लि., बड़ोदरा के सहयोग से सम्पन्न हुआ है। इस अध्ययन को ध्यान में रखते हुये प्रोटोटाइप गैसीकारक इकाई की स्थापना की योजना बनाई जा रही है।

जूस प्राप्ति हेतु गन्ना / बगास के विसरण विधि का पारंपरिक विधि की जगह नयी यंत्रों की संभावनाओं पर अध्ययन-

देश में वर्तमान में कार्यरत विभिन्न प्रकार के गन्ना / बगास के विसरण विधि आधारित मिलों पर अध्ययन किया गया है। इस विषय पर एक शोधपत्र राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (NSI), कानपुर एवं एस. निजलिंगप्पा शर्करा संस्थान (SNSI), बेलागावी द्वारा संयुक्त रूप से अप्रैल, 2015 में बेलगाम,कर्नाटक में हुये सेमिनार में प्रकाशित किया गया।

भौतिक रसायन विभाग-

मे. भारतीय शर्करा एग्सिम निगम लि., नई दिल्ली के सहयोग से निम्न विषय पर अनुसंधान परियोजना शुरू की गई है-

“अतिरिक्त कंडेंसेट जल का शर्करा कारखानों/ फैक्र्टियों में उपयुक्त जल के रूप में प्रयोग पर अध्ययन जिससे शून्य स्वच्छ जल लागत स्तर प्राप्त करने संबन्धित कार्यप्रणाली का अध्ययन।”

प्रयोग की दौरान प्राप्त आंकड़ों के आधार पर स्वच्छ जल, वाहित जल-शोधन एवं गर्म/ ठंडा जल प्रबंधन के दौरान उ.प्र., महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं उत्तराखंड के शर्करा कारखानों में जल प्रयोग का अध्ययन किया गया, साथ ही साथ गर्म तथा ठंडी जलधाराओं के नमूनों का भी विभिन्न मापदंडों के आधार पर अध्ययन किया गया है।

गन्ने को सड़ने से बचाने के लिए सेंसर का विकास

उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र से प्राप्त आकड़ों का संकलन एवं विश्लेषण जारी है।

शर्करा प्रोद्योगिकी विभाग-

सल्फररहीत चीनी के उत्पादन के लिये तकनीकी / आर्थिक रूप से अन्य व्यावहारिक विकल्प-

प्रयोगशाला स्तर के अध्ययन में मे. लोकमंगल कृषि औद्योगिक लि, शोलापुर, महाराष्ट्र के द्वारा किये गये प्रयोग को अन्य उत्तर भारतीय गन्ना जूस पर कार्बोफास्फोटेशन प्रक्रिया से शर्करा के उत्पादन में उपयुक्तता पर प्रायोगिक अध्ययन किये गये।

सल्फर-रहित चीनी के उत्पादन के लिये किण्वन गैसों के माध्यम से गन्ना के जूस का शोधन-

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मे किये गये सफल प्रयोगों के उपरांत राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में उत्पादित चार अलग-अलग पर्जातियों के गन्नों पर शर्करा तकनीकी विभाग के प्रयोगशाला के अध्यन में जूस शोधन के परिणाम उत्साहवर्धक पाये गये हैं, जिससे सल्फ्यूरीकरण प्रक्रिया से जूस शोधन की तुलना में बेहतर परिणाम प्राप्त किये गये।