जैव रसायन अनुशासन (पाठ्यक्रम) सभी प्रकार के जैविक, कृषि किण्वन एवं पर्यावरण के क्षेत्र में शिक्षण शोध एवं परामर्श के क्षेत्र में महत्पूर्ण भूमिका अदा करता है। उपरोक्त सारे क्षेत्र जैव रसायन विषय के विस्तृत ज्ञान के बिना अधूरे हैं। हाल के दिनों में जैव तकनीकी तथा उनका औधोगिक उपयोग जैव रसायन सिद्धान्तों के आधार पर ही संभव हो सका है। यह विभाग छात्रों को सैद्धान्तिक तथा प्रायोगिक जैव रसायन का विस्तृत ज्ञान, शर्करा एवं अल्कोहल तकनीक के क्षेत्र में, प्रदान करता है। जो छात्र ए. एन. एस. आई. (शर्करा तकनीक) और डी.आई.एफ.ए.टी पाठ्यक्रम को पूरा करते हैं. उनकी प्लेसमेंट (नौकरी) देश तथा देश के बाहर आसानी से हो जाता है अथवा वे स्वरोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ सकते है।
संस्थान सी.एस.जे.एम. विश्वविद्यालय, जो कानपुर में स्थिति है, से मान्यता प्राप्त शोध पाठ्यक्रम भी संचालित करता है। यहाँ के शिक्षकों की देखरेख में 30 से ज्यादा छात्रों को पी.एच.डी. डिग्री प्राप्त हुई है। संस्थान इच्छुक अभ्यर्थियों को एम.फिल./एम.एस.सी. (डिसर्टेशन/थीसिस/परियोजना) कार्य भी पूर करवाता है।
यहाँ का जैव रसायन संबंधित पाठ्यक्रम और पाठ योजना शर्करा और अल्कोहल उत्पादन के क्षेत्र में मानवशक्ति के उपयोग से संबंधित है। संस्थान के पाठ्यक्रम घरेलू तथा देश से बाहर प्रशिक्षण प्राप्त आवश्यक मानवशक्ति की आपूर्ति की दृष्टिकोण में रखते हुए छात्रों को प्रशिक्षित करता है, जिससे शोध और औद्योगिक जरुरतों को पूरा करने के साथा-साथ बीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए नयी पीढी को तैयार किया जा सकें।
यहाँ एक लघु बीयर-सह-अल्कोहल तकनीक प्लांट भी छात्रों को बीयर एवं अल्कोहल उत्पादन की प्रायोगिक प्रशिक्षण एवं शोध हेतु प्रदान की गई है।
जैव रसायन विभाग सभी आधुनिक सुविधाओं से संलग्न है जो विभिन्न परियोजनाओं पर वैसे शोध कार्य पूरा करता है जिनका वित्तीय प्रबंधन विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं और शर्करा उद्योग द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर का जैव रसायन विभाग शर्करा, अल्कोहल और संबंधित उद्योगों को पूरे देश में तथा विदेशों में भी परामर्श प्रदान करती है। कुछ मुख्य तकनीकी सलाह के क्षेत्र निम्नलिखित हैः-
1- नई आसवनियों की स्थापना के लिए परामर्श प्रदान करना।
2- किण्वन तथा अल्कोहल निर्माण क्षेत्र में सुधार लाना।
3- शुद्ध जल की खपत कम कर नुकसान में कमी लाना।
4- शीरा का ऑटोकम्बस्टन।
5- आसवनियों में जल शोधन संबंधित समस्याओं को रोकना/शून्य तरल प्रवाह तय करना।
6- शर्करा उद्योग में सूक्ष्मजीवों पर नियंत्रण ।
7- आसवनियों मे /ई.टी.पी./जेड.एल.डी.आदि परियोजनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना।
राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में इस विभाग के द्वारा पिछले दशक 320 से भी ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित किए गए हैं।