अच्छी तरह से संवाद करने की क्षमता व्यक्ति की एक सबसे प्रमुख व्यक्तित्व का गुण है। अन्य सारे कौशल अच्छी संवाद कौशल पर ही निर्भर करती है। समूह में काम कर सकने की क्षमता, स्वयं का अंतरवैयक्तिक कौशल और व्यक्ति की व्यवसायिक क्षमता, आपकी संवाद क्षमता पर ही निर्भर करती है, अतः अच्छी संवाद क्षमता विकसित करने के लिए कुछ आवश्यक संवाद कौशल के पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
यदि आप चीजों की सही व्याख्या नही कर पाते हैं तो संभव है कि आप अपने विचारों को उतना अच्छे से व्यक्त न कर सके जो आप बताना चाहते है। इसलिए यह व्यावहारिक है कि विचारों के विस्तृतपूर्वक कहने का उचित प्रयास करें। यदि आपको यह प्रतीत हो कि आपके विचारों में कुछ असहजता आ रही है, तो उसे विशेष रुप से समझाने का प्रयत्न करे ताकि लोगों में गलत धारणा न पहुँचे, यदि आप विस्तारपूर्वक लोगों को कुछ समझाना चाहते हैं तो उन्हे विस्तृत परंतु सुलझे हुये विचार दें जिससे वे आपकी बातों को व्यावहारिक मानकर उत्सुकतापूर्वक सुनेगे ।
भाषाएँ हमारे पूर्वजों की तरफ से प्रदान की गई अमूल्य धरोहर है अतः हमें भाषाओं का सम्मान तथा उचित प्रयोग सीखना चाहिए। अपनी शब्द ज्ञान बढ़ाइए तथा अपने दैनिक जीवन में इसे सही उच्चारण से साथ प्रयोग करना सीखें। भाषा के उपर मजबूत पकड़ आपके संवाद क्षमता को मजबूत करने में काफी सहायक होगी।
जब कभी हम बातचीत करते है हमारी भाव भंगिमा हमारे संवाद का एक हिस्सा बन जाती है। अतः आपको उन्हें सही से उपयोग करना चाहिए जिससे आपकी संवाद क्षमता में प्रभाव उत्पन्न हो सके। ध्यान रहे यदि आप शारीरिक हाव-भाग का सही उपयोग नहीं करते है, तो वह आपकी प्रभावी संवाद क्षमता को नुकसान पहुँचता है। एक स्थिर शारीरिक भाव तथा नियत्रित भाव भंगिमाएँ आपकी प्रभावी वार्तालाप को सुनिश्चित करती है। यदि आप शारीरिक भाव भंगिमाओं के सफल प्रयोग में निपुण हैं तो यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि इससे आपके श्रोता आपकी बातों को सुनते ही नहीं बल्कि वे आपकी शारीरिक हाव-भाव से वे समझते भी हैं। अतः इस पर उनका ध्यान केंद्रिंत करने के लिए आपको प्रयास करना चाहिए।
यदि आप अपने शब्दों को स्पष्ट बोलते हैं तो आपके श्रोता इसकी प्रशंसा करेंगे। वे आपको बिना रोक-टोक किए सहजता से आपकी बातों के समझ सकेंगे। आपकी आवाज की तीव्रता भी इसमें महत्पूर्ण है। अगर आप इसका ध्यान रखेंगे तो आप शब्दों से ज्यादा भावनाओं से लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर पाएंगे वहीं यदि सही ध्वनि तीव्रता का प्रयोग न किया जाए तो श्रोता तुरंत आपकी बातों में रुचि लेना बन्द कर देंगे।
हमने सीखा है कि मौन सबसे बेहतर होती है, जो बातें आप बिना व्यक्त किए छोड़ देते है वे आपके द्वारा कही गई बातों से भी कहीं बेहतर होती हैं, लेकिन इससे संवाद का नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि जो विचार व्यक्त की जानी चाहिए थी वह छूट जाती है। अच्छी चीजों को व्यक्त करना सहज होता है परंतु जरुरी नहीं कि वे बातें सभी को अच्छी लगे। अतः आपको निर्णय करनी चाहिए कि कहाँ जोर देना जरुरी है। यदि अच्छाई बोल देने में है तो आपको आगे बढ़कर व्यक्त करने का साहस होना चाहिए।
यदि आप अपने वार्तालाप में सत्यापित की जा सकने वाले तथ्यों को शामिल करते हैं तो उन्हें विशेष रुप से दोबारा जाँच लें। इसके लिए आपको अतिरिक्त प्रयत्न करना पड़ेगा क्योंकि यह ज्यादा जरूरी बात है क्योंकि गलत तथ्यों का प्रयोग आपके विश्वसनीयता को कम करता है। जिसे दोबारा अर्जित करने में आपको पुनः प्रयत्न करना पड़ेगा अतः आप बातचीत के दरम्यान अपनी त्रुटियों को कम से कम करने की आदत डालते हैं तो आपको आपकी त्रुटियाँ मिल जाएंगी और आप इसके लिए निश्चिंत रहेंगे।
आपकी ध्यानपूर्वक और धीरज के साथ दूसरों के विचारों को जानने की क्षमता आपकी उच्च संवाद कौशल की कुँजी हैं,अतः आपको अपने श्रोता को विस्मय में डालने से बचना चाहिए। हालाँकि आपका यह कहना कि आप सहमत हो, सहमति मे सिर्फ सर हिलाने से अच्छा है। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि आप ध्यान ना दे रहे हों कि आपसे क्या कहा जा सकता है, अतः ऐसी स्थिति मे वक्ता से कहकर सुनिश्चित हो लें क्योंकि यह कभी अच्छा नहीं होता कि आप यह दर्शाते हों कि आप सुन रहे और आपका ध्यान कहीं और हो। यदि आपके दिमाग में कोई अन्य बात चल रही हो तो आप यह बता दें कि आप किसी और समय बात कर लेंगे।
आपको हमेशा दूसरों पर आरोप लगाने, अलोचना करने तथा दूसरों के मामले में निष्कर्ष निकालने से बचना चाहिए। यदि आप बेवजह की आलोचना अथवा आरोप आदि लगाते हैं तो आप संवाद में रुकावट ही पैदा करते हैं। कभी-कभी आपको संवेदनशील होकर भी बातचीत करनी चाहिए, जब आपको आपको पता हो कि सामने वाला व्यक्ति को बहुत ही संवेदनशील है। अतः ऐसे अवसरों पर आपको अपनी शब्दों तथा ध्वनि पर नियंत्रित रखनी चाहिए तथा शारीरिक हाव-भाव भी ऐसे रखने चाहिए जिससे सामने वाला व्यक्ति अपनी वस्तुस्थिति को समझ सके। आलोचनापूर्ण आरोप लगाने वाले, निष्कर्ष निकालने वाले अथवा दोषी ठहराने वाले शब्द प्रायः संवाद में रुकावट डालते है जिससे बाद मे बचाव की मुद्रा मे आना पड़ता है। अतः यह कभी भी समस्या के समाधान में सहायक नहीं हो सकता ।
परस्पर विरोधी विचारधाराएँ तथा उनके समाधान का प्रयास हमारी संवाद कौशल की अच्छी परीक्षा लेती है। विरोधी विचारधाराएँ किसी भी विमर्श का सही समाधान तक पहुँचाने में शायद ही मदद करते हों, जिससे अंततः हमें सिर्फ आत्मसम्मान के ठेस लगने का अनुभव होता है। यदि आप ऐसी अवस्था में पहुँच जाएं तो आप अपनी भावनाओं पर काबू रखकर विनम्र बने रहें। आप अपनी दृष्टिकोण को तार्किक ढंग से तथा शांत भाव से सामने रखें तथा उत्तेजना से बचें किसी की व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप न करें तथा अपनी आवाज को संयमित रखें ताकि आपके विचारों को लोग अन्यथा भाव से न लें। आप किसी विवाद को सुलझाना चाहते हैं तो यह जरुरी नहीं कि आप जिन बातों से सहमत न हों उसे मान ले, विवादों का सबसे महत्वपूर्ण वजह लोगों को संबंधित विषय में विस्तृत जानकारी का न होना होता है, और लोग वस्तुस्थिति का सही आकलन नहीं कर पाते और विवादों का जन्म होता है। इन चीजों को आसानी से सुलझाया जा सकता है। यदि सभी लोग सावधानीपूर्वक विस्तार से समझ लें। अतः यदि आपको विवाद होने की निश्चितता प्रतीत हो तो आप उस मामले से खुद को अलग कर लें। ऐसी अवस्था मे या तो आप बातचीत या विमर्श से खुद को अलग कर लें अथवा सावधानीपूर्वक असहमति व्यक्त करें अथवा किसी को मामले में दखल देने का आग्रह करें। आप यह भी कर सकते हैं कि आपको जो कहना है स्पष्ट रुप से कह दें परन्तु कठोर वचनों का प्रयोग न करें, किसी को नीचा दिखाने वाले या अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग न करें। यदि आप वाद-विवाद से अप्रियता को हटाने में सफल होते हैं तो शायद आप परस्पर स्वीकार्य समाधान तक भी पहुँच जाए। मानवीय इतिहास विपरीत विचारधाराओँ के सुलझने अथवा एक साथ सहअस्तित्व मे होने की घटनाओं से भरी पड़ी है। हमारे पास कई विवाद रहित विमर्श के मामले हैं जहाँ आप किसी भी विषय पर विवाद रहित ढंग से तर्क वितर्क कर सकते हैं।