वाद-विवाद एवं परिचर्चाः-

छात्र जीवन में तथा उसके उपरान्त भी आपको अनेक अवसरों पर वाद-विवाद एवं परिचर्चा में शामिल होना पड़ता है। ये हमारे विचारों के आदान-प्रदान करने का बेहतर उपाय हैं। यह आपकी ज्ञान तथा तार्किकता को बढ़ाता है। हालाँकि संकुचित मानसिकता परिचर्चा एवं वाद-विवाद को लम्बी बातों तक सीमित करती है, और आपको एक-दूसरे के साथ विचारों को संतुलित करना पड़ता है। आपको यह जानना चाहिए कि कैसे क्यों और किस प्रकार परिचर्चा एवं वाद-विवाद करना चाहिए इससे संबंधित कुछ सलाह यहाँ दी गई हैः-

वाद-विवाद एवं परिचर्चा का प्रयोजनः-
यह एक निशित दृष्टिकोण तथा सूचना के आदान -प्रदान पर केन्द्रित होनी चाहिए न कि दूसरे को अपने विचारों से सहमत करने पर। एक गुणवत्तापूर्ण विमर्श नये ज्ञान को जन्म देता है, जबकि दूसरे का अपने विचारों से सहमत कराने का प्रयास जानकारी बाँटने के लिए काफी नही होती। यह सिर्फ अपने विचारों पर टिके रहने के अतिरिक्त कुछ नहीं होती।
वाद-विवाद अथवा परिचर्चा के तरीके/ नियम -
दूसरे व्यक्ति की निम्न बातों को समझने के लिए ईमानदार प्रयास करना चाहिएः-
1- दृष्टिकोण
2- विषय क्षेत्र
3- तर्क तथा निष्कर्ष निकालने की क्षमता
4- विश्वास, अंतर्ज्ञान तथा अन्य उपायों का प्रयोग जिससे निष्कर्ष तक पहुँचा जा सके।
5- निष्कर्ष

पक्षपातपूर्ण रवैया तथा सूचनाओं को छिपाने का प्रयास अपर्याप्त ज्ञान का परिचायक है, परन्तु तटस्थतता का व्यवहार भी विमर्श को लम्बा खींचता है। अतः सकारात्मक तरीके से किसी का पक्ष लेना बेहतर है यदि इससे आपके तटस्थ विचारों को नुकसान न पहुँचता हो, एसी स्थिति मे आपके द्वारा दी गई सूचनाएँ तीव्र गति से तथा गहराई तक विमर्श की जाती हैं। साथ ही साथ हमें दूसरों के विचारों को भी समझने का प्रयास भी करना चाहिए।
वाद-विवाद अथवा परिचर्चा के परिणामः
यह दूसरे लोगों की दृष्टिकोण को समझने में बढ़ावा देता है। यह हमारी दृष्टिकोण को भी पूरी तरह अथवा कुछ हद तक नाटकीय ढंग से परिवर्तित कर सकता है। यह विभिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न अनुभव प्रदान करने वाला भी हो सकती है। इसके सफलता को हम निम्न शब्दों में दर्शा सकते हैं।

सूचनाओं के आदान-प्रदान के क्षेत्र मेः-
1- किस हद तक सूचनाएँ आदान-प्रदान की गई।
2- किस गहराई तक सूचनाएँ आदान-प्रदान की गई।
3- कितनी मात्रा में सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ ।

प्राप्त ज्ञानः-
1- नई दृष्टिकोण का विकास।
2- नई अनुमान/अटकल का विकास।
3- नई तरीकों की खोज।
4- नई विश्वास का बनना।

अच्छी वाद-विवाद अंततः नई ज्ञान के विकास मे सहायक होती है।